कृषि क्रांतियों की मुख्य विशेषताएं
1. हरित क्रांति: 1960 के दशक में भारत ने कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए नई तकनीकों और उच्च उपज वाली फसल किस्मों को अपनाया। इस क्रांति ने देश को खाद्य सुरक्षा में आत्मनिर्भर बनाया और कृषि उत्पादकता को उच्च स्तर पर पहुंचाया।
2. श्वेत क्रांति: "ऑपरेशन फ्लड" के अंतर्गत वर्गीज कुरियन के नेतृत्व में भारत ने दूध उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल की। इस क्रांति ने भारत को दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक बना दिया और डेयरी उद्योग को एक संगठित उद्योग के रूप में स्थापित किया।
3. पीली क्रांति: तिलहन के उत्पादन में वृद्धि करने के लिए यह पहल की गई, जिससे भारत न केवल आत्मनिर्भर बना बल्कि तिलहन का निर्यातक भी बन गया। 1990 के दशक में तिलहन उत्पादन ने 25 मिलियन टन का रिकॉर्ड स्थापित किया।
4. गुलाबी क्रांति: भारत में पोल्ट्री और मांस उत्पादन में उछाल को "गुलाबी क्रांति" कहा जाता है। इसने पोल्ट्री और मांस प्रसंस्करण में तकनीकी सुधारों को प्रोत्साहित किया, जिससे मांस के निर्यात और उत्पादन में वृद्धि हुई।
5. ऑपरेशन ग्रीन्स: टमाटर, प्याज और आलू जैसी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए इस योजना की शुरुआत की गई, ताकि फल और सब्जियों की आपूर्ति में स्थिरता लाई जा सके। इसे 2018-19 में केंद्रीय बजट में लॉन्च किया गया था।
6. नीली क्रांति: जलीय कृषि के क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से नीली क्रांति की शुरुआत हुई। इसके तहत मछली पालन को बढ़ावा दिया गया, जिससे भारत में मत्स्य पालन एक अत्यधिक उत्पादक और संगठित क्षेत्र बना।
7. सिल्वर क्रांति: यह क्रांति अंडा उत्पादन में वृद्धि से संबंधित है। अंडों के उत्पादन में वृद्धि, बेहतर पोषक तत्वों से युक्त आहार और उन्नत स्वास्थ्य प्रबंधन के कारण हुई, जिससे पोषण में सुधार हुआ।
8. भूरी क्रांति: यह भारत में कॉफी उत्पादन को बढ़ावा देने और इसकी गुणवत्ता सुधारने पर केंद्रित है। विशेष रूप से, पर्यावरण के अनुकूल और सामाजिक रूप से जिम्मेदार उत्पादन के माध्यम से उन्नत कॉफी की मांग को पूरा करने के लिए यह पहल की गई।
9. स्वर्ण क्रांति: 1991 से 2003 के बीच भारत में फलों के उत्पादन में तेजी आई, विशेषकर केले और आम जैसे फलों का उत्पादन बढ़ा। इस क्रांति ने पोषण के नए विकल्प प्रदान किए और सतत आजीविका को बढ़ावा दिया।
10. काली क्रांति: इथेनॉल और बायोडीजल का उत्पादन बढ़ाकर पेट्रोलियम उत्पादन को बढ़ाने के लिए यह कदम उठाया गया। इथेनॉल को पेट्रोल में मिलाकर प्रदूषण कम करने में मदद मिलती है, और यह एक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है।
11. ग्रे क्रांति: उर्वरकों के उत्पादन में वृद्धि के लिए ग्रे क्रांति का आरंभ हुआ, ताकि कृषि उत्पादन में वृद्धि हो सके। यह क्रांति हरित क्रांति के प्रभावों से जुड़ी है और इसके दुष्प्रभावों को ध्यान में रखकर कृषि में संतुलन बनाए रखने पर केंद्रित है।
12. स्वर्णिम रेशा क्रांति: जूट उत्पादन को बढ़ाने के लिए यह पहल की गई। औद्योगिक क्रांति के समय से जूट का कपड़ा उद्योग में कच्चे माल के रूप में उपयोग होता आया है। इसके तहत प्रसंस्कृत जूट से मजबूत धागे और अन्य उत्पाद बनाए जाते हैं।
सारांश
ये विभिन्न कृषि क्रांतियाँ उत्पादन को बढ़ाने और आत्मनिर्भरता हासिल करने के साथ-साथ पर्यावरण और आर्थिक स्थिरता को भी प्रोत्साहित करती हैं। इनसे भारत की कृषि और संबंधित उद्योगों को मजबूती मिली है और इनका सामाजि
क-आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान है।
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