CBSE की नई परीक्षा नीति (2026) से छात्रों को होने वाली 20 संभावित समस्याएँ
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लगातार परीक्षा का दबाव – दो परीक्षाओं के कारण पूरे साल पढ़ाई और परीक्षा का तनाव बना रहेगा।
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मानसिक तनाव में वृद्धि – दो बार बोर्ड परीक्षा देने की अनिवार्यता से छात्रों का मानसिक दबाव बढ़ सकता है।
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कम समय में तैयारी की चुनौती – पहली परीक्षा का परिणाम आने के बाद दूसरी परीक्षा की तैयारी के लिए बहुत कम समय मिलेगा।
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अतिरिक्त परीक्षा शुल्क का बोझ – दोनों परीक्षाओं के लिए पहले ही परीक्षा शुल्क लिया जाएगा, जो कई परिवारों के लिए आर्थिक रूप से कठिन हो सकता है।
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विषय परिवर्तन की जटिलता – एक बार LOC भरने के बाद विषय परिवर्तन केवल दूसरी परीक्षा में ही संभव होगा, जिससे छात्रों के पास कम विकल्प रहेंगे।
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ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों के लिए समस्या – डिजिटल संसाधनों की कमी से कई छात्र DigiLocker और अन्य ऑनलाइन सेवाओं का लाभ नहीं उठा पाएंगे।
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कमजोर छात्रों के लिए अधिक दबाव – यदि पहली परीक्षा में अच्छे अंक नहीं आते, तो दूसरी परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन करने का दबाव बढ़ेगा।
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मार्कशीट में भ्रम – मार्कशीट में पहली और दूसरी परीक्षा के अंक दिखाने से छात्र और कॉलेजों के लिए भ्रम की स्थिति बन सकती है।
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खेल और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी पर असर – जिन छात्रों को खेलों या प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करनी है, उनके लिए दो बार बोर्ड परीक्षा देना कठिन हो सकता है।
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आगे की पढ़ाई में अनिश्चितता – अगर छात्र दूसरी परीक्षा न दें, तो कॉलेज में प्रवेश के दौरान उनके अंकों को लेकर भ्रम की स्थिति हो सकती है।
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पुनर्मूल्यांकन प्रक्रिया अस्पष्ट – पुनर्मूल्यांकन और उत्तर पुस्तिकाओं की फोटोकॉपी प्राप्त करने की प्रक्रिया स्पष्ट नहीं है, जिससे छात्रों को परेशानी हो सकती है।
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केवल दूसरी परीक्षा में बैठने की चुनौती – अगर कोई छात्र केवल दूसरी परीक्षा में बैठता है और असफल हो जाता है, तो उसे अगली साल फिर से पहली परीक्षा में बैठना होगा, जिससे एक साल बर्बाद हो सकता है।
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परीक्षा केंद्र की दूरी की समस्या – सभी स्कूल परीक्षा केंद्र नहीं बनेंगे, जिससे छात्रों को दूरस्थ परीक्षा केंद्रों तक यात्रा करनी पड़ सकती है।
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प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में बाधा – दो बोर्ड परीक्षाओं के कारण छात्रों के पास JEE, NEET, NDA आदि परीक्षाओं की तैयारी के लिए कम समय बचेगा।
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इंटरनल असेसमेंट केवल एक बार होगा – इससे पहली परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करने वाले छात्रों को कोई अतिरिक्त लाभ नहीं मिलेगा।
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बोर्ड परीक्षा में फेल होने पर 11वीं में प्रवेश की समस्या – पहली परीक्षा में फेल होने वाले छात्रों को दूसरी परीक्षा में पास होने तक 11वीं में प्रवेश सुनिश्चित नहीं होगा।
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फाइनल रिजल्ट का इंतजार करना पड़ेगा – पहली परीक्षा के बाद कोई पासिंग सर्टिफिकेट नहीं मिलेगा, जिससे छात्रों को फाइनल रिजल्ट तक इंतजार करना पड़ेगा।
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अतिरिक्त परीक्षा की अनुमति नहीं – अगर कोई छात्र दोनों परीक्षाओं में पास नहीं हो पाता, तो उसे फिर से परीक्षा देने का मौका नहीं मिलेगा, जिससे उसका एक साल बर्बाद हो सकता है।
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मेडिकल इमरजेंसी या अन्य कारणों से समस्या – अगर कोई छात्र पहली परीक्षा में नहीं बैठता और दूसरी परीक्षा किसी कारण से मिस हो जाती है, तो उसे एक और साल इंतजार करना पड़ेगा।
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बदलते नियमों के कारण भ्रम – नई नीति के बार-बार बदलने से छात्रों और अभिभावकों के लिए इसे समझना और अपनाना मुश्किल हो सकता है।
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